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मित्रता एक जिम्मेदारी अवसर नही


मित्रता सही मायने मे महत्वपूर्ण वो है जो आपके दुख का भागीदार बने,सुख मे तो सब साथ होते है।

मेरी हमेशा कोशिश रही है,मै सुख मे भले किसी का साथ न दे पाऊँ लेकिन उसके दुख भरे दिनो मे हमेशा साथ रहने की कोशिश करता हूँ,हर संभव मदद भी करता है।

मै आप सबसे निवेदन करता हूँ कि मित्रता के रिस्ते को ऐसा मजबूत किया जाये कि हमे हर बड़ा काम,बहुत गहरा दुख भी छोटा लगे,और ये तभी संभव है जब एक हमारे मित्र पर संकट आये तो हम सब मिलकर उसके दुखो का भागीदार बनकर उसकी मदद करे,उसके हौसले को टूटने न दे,ये मत सोचिए कि उसके उपर दुख है हमे क्या,

 नम्बर आपका भी आयेगा और आपको लोगो की जरूरत होगी लेकिन भीड़ मे रहकर भी आप अकेले रहेगे,और अंत मे खुद को कोशने के शिवाय कोई रास्ता नही होगा,

जलन और झगड़ा रिस्तो को खराब करने के लिए नही होनी चाहिए


झगड़ा और जलन रखनी है तो खुद से रखिए  आगे बढने के लिए  और तरक्की की उच्ची शिखर तक पहुँचने के लिए,वर्ना आपस मे लड़कर,झगड़कर नुकसान के शिवाय कुछ नही होगा और ऐसा हम सोचते है औ करते है  तो निश्चित तौर से हम जिस फिल्ड़ मे होगे तरक्की का लम्बा रास्ता तय करने मे सफल रहेगे

इसलिए आइए एक मजबूत कड़ी तैयार की जाये 

कहा भी गया है कि एकता मे ही शक्ति होती है।

हमे इक्कठा होना चाहिए,हर गाँव मे जो लड़के है उनकी खुद की मित्रो की युनिटी होनी चाहिए,

ऐसा करके देखिए आप हर जगह अपने को सबसे भारी महसूस करेगे,हर बड़ा काम छोटा लगेगा।


धन्यवाद

आपका

“सूर्यकान्त यादव”

समाजिक कार्यकर्ता

किसानो,मजदूरो;गरीबो के हक के लिए संघर्षरत

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असंस्कार,गंदी सोच

असंस्कार और गंदी मानसिकता ही समाज मे फैले आराजकता का असली कारण है•••••

पुरातन काल मे हम गुरूकुल मे पढते थे,जिसमे हमे ऐसी शिक्षा दी जाती थी,जो हमे दूसरो का आदर करना,नारी का सम्मान करना,उन हर कामो से दूर हटाना जो समाज के लिए ठीक नही है के लिए प्रेरित करती थी।

रावण मे लाख बुराईया थी लेकिन वो नारी का सम्मान करना जानता था और ये उस समय की शिक्षा का कमाल था,गुरूकुल मे दिये गये संस्कारो का असर था।

सीता उसके कब्जे मे महीनो तक रही लेकिन वो उनके साथ कभी भी दुराचार करने की कोशिश नही की जबकि चाहता तो कोशिश कर सकता था।

पर आज के कुछ लोगो के क्या कहने

6 महीने की लड़की भी महफूज नही,सोचिए हम किस स्तर पर पहुँच चुके है,6 महीने की लड़की को हम छुने से ड़रते है,उसको सम्भालकर उठाते है पर कुछ लोग इतनी छोटी लड़कियो को भी अपनी हवस का शिकार बना ले रहे है।

इसका सबसे बड़ा कारण है,हमारी सोच,छोटे-छोटे बच्चो के हाथो मे स्मार्ट फोन का होना,अभिभावको द्धारा अपने बच्चो पर ध्यान न देना।

बच्चो के सामने ही अपनी पत्नी के साथ प्यार की पीगे लड़ाना,

असर तो पड़ेगा न,

इन सब चीजो का ख्याल रखिए,अपने बच्चो को गणित,विज्ञान की किताब पढाने के साथ-साथ भगत सिह,चन्द्रशेखर आजाद,महात्मा गाँधी,उधम सिह की जीवनी की किताबे भी उनके हाथो मे थमाइए ताकि हमारी पीढियाँ रूबरू हो सके कि महान बनने के लिए अच्छे ब्यक्तित्व का होना बहुत जरूरी है।

•••• सूर्यकान्त यादव—-

समाजिक कार्यकर्ता

मो और ह्वाट्सअप — 9452906481

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जलियावाला बाग

13 अप्रैल 1919

स्वर्ण मंदिर अमृतसर से सटा हुआ जलियावाला बाग मे स्थिति  ये वही कुआ है जो आज के दिन  शहीदो के लाशो से भर गया था,

गोरो ने यहाँ हो रही सभा मे इक्कठे निर्दोष लोगो पर बिना किसी चेतावनी के निर्दयता की सीमा लाँघते हुए गोलिया चलवा दी थी। और हमे जकड़ी बेड़ियो से आजाद कराने के लिए लालायित भारत माँ के सपूतो ने अपने आप को देश के लिए कुर्बान कर दिया था।

जिसमे लगभग 1000 लोग शहीद हुए थे और 2000 के करीब घायल हुए थे।
••••जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी••••••
आज भारत की आजादी के लिए हमारे महापुरूषो की जो  संघर्ष जीवन गाथा है,उससे हम कटते जा रहे है,हम अपने बच्चो को इस इतिहास से रूबरू नही होने देना चाहते है जो हमारे देश के लिए घातक है,हमारी पीढियो को निकम्मा बनाने की तरफ एक बढता हुआ कदम है।

मै खुद अपने आप महसूस करता हूँ जब किसी महापुरूष के संघर्षो को पढता हूँ,देश की आजादी के लिए उनके द्धारा सही यातनाओ से रूबरू होता हूँ,तो मन,दिल मे ये बात जरूर उठती है कि हमे देश को सुन्दर बनाने के लिए अपने जीवन के समय मे से कुछ समय तो देना ही चाहिए।

आज का भारत और आज से 70 साल के पुराने भारत  मे हुए आपसी सहयोग,भाईचारे मे बदलाव हमारे लिए चिन्ता  का विषय है।

गोरो को अपने देश से खदेड़ने के लिए 70 साल पहले बिना जाति,धर्म का ख्याल रखे जो एकजुटता दिखाई गयी थी हमारे देश की जनता के द्धारा काश वो आज भी होती,तो निश्चित तौर पर हम आज विश्व गुरू होते।

लेकिन अब जो बुरी  नजर हमे बाँटने का  हमारे देश पर लगी उसे उतारना ही होगा,तभी हम तरक्की के झंड़े को उँचा  कर सकते है,

और इसके लिए पहला कदम हमे अपने आजादी के इतिहास को पढना होगा,उस पर अमल करना होगा,अपने शहीदो के जज्बो,उनके विचारो को अपने मे उतारना पड़ेगा,और अपनी नई पीढियो को 70 साल के गुलाम भारत मे हुई निर्दयता को बताना पड़ेगा,भगत सिह के साथ असफाक उल्ला खाँ,गुरू गोबिन्द सिह, को भी पढना पड़ेगा

तब जाकर हम फिर से बाहरी ताकतो,देश विरोधी ताकतो के खिलाफ शायद एकजुट हो जाये।

••••• सूर्यकान्त यादव••••

समाजिक कार्यकर्ता

प्रबन्धक– नव सवेरा सेवा संस्थान

शहीदो पर गर्व है,फर्जी देशभक्तो पर शर्म

अरूण बाजपेई शायद इस नाम से बहुत कम लोग परिचित हो,क्योकि ये नाम न किसी हिरो का है,न किसी क्रिकेटर का और ना ही किसी नेता है।

ये नाम भारत के उस जाँबाज सेना के सिपाही का है जो 11 महीने पाकिस्तान की जेल मे गुजारे,हजारो यातनाये झेली लेकिन पाकिस्तान को अपने भारत की किसी खुफिया तंत्र से रूबरू नही होने दिया।

करोड़ो का लालच दिया गया लेकिन इन्होने उसे कागज समझा।

फिर पाकिस्तान का रिश्वत काम नही आया तो उसने इन्हे यातनाये देना शुरू किया

इनको बर्फ की सिल्ली पर घंन्टो बाँधकर लिटाया गया,भूख,प्यास से तड़पाया गया,6 महीने तक एक छोटी अन्धेरी कोठरी मे रखा गया जिसमे उनको नित्य क्रिया भी करनी पड़ती थी,उस कोठरी मे ये अपना पैर भी नही फैला सकते थे,लगातार मारा गया,टार्चर किया गया,

पर पाकिस्तान की हर यातनाये इनके दिल मे भारत के लिए प्रेम लाती रही और अंत मे पाकिस्तान के सिपाही यातनाये देकर थक गये लेकिन इनका मुहँ नही खोलवा पाये।

11 महीने बाद अमेरिकी एजेन्सी ने इन्हे ढूँढ निकाला और ये छुट कर भारत आये 

और अपनी बाते एक किताब के जरीये लोगो तक पहूँचाया,

उस किताब का नाम मुझे पूरी तरह याद नही आ रही है लेकिन शायद उसका नाम 11 महीने पाकिस्तान के है,

कुछ सालो पहले मै उसे पढा था,और पढकर आँखो मे आँसु आ गये थे,और दिल कह उठा था कि भारत सरकार जितने पैसे क्रिकेटरो पर लूटा रहा है,नायक,नायिकाओ के उपर लूटा रहा है वो फिजूल है,

पैसे तो देश के जवानो पर ही लूटाना चाहिए,हर नौकरी से ज्यादा इनकी तनख्वाह होनी चाहिए,सुविधाये होनी चाहिए।

क्योकि सच्चाई यही है कि हम महफूज है तो इनकी ही बदौलत,हम सपने भी देख रहे है तो इनके ही कारण,

कितनी शर्म की बात है कि इनके जान की कीमत कुछ भी नही,यहाँ तक की जब ये शहीद हो जाते है तो इनके परिवार वालो को हर सरकारी दफ्तरो मे चक्कर लगाना पड़ता है,और इनके शहादत के बाद मिलने वाले पैसो मे से भी कमीशन ले लिया जाता है।

सोचनीय विषय है कि आखिर क्या इनके बिना हम रातो को सो सकते है,एक बार याद कीजिए जब देश गुलाम था,उस समय हालात क्या थे,

एक बार देश के क्रिकेटरो,नायक,नायिकाओ से कहिए,सिर्फ एक रात के लिए सीमा पर बंदूक लेकर खड़े रहने के लिए

देशभक्ति की सारी गलतफहमियाँ दूर हो जायेगी।

चलिए हटाइए 

इनकी तनख्वाह देने की घोषणा कर दीजिए 30 हजार और कमाये पैसो को भारत सरकार के कोश मे जमा करवाइए

फिर देशभक्ति की गलतफहमियाँ दूर हो जायेगी

क्रिकेट और फिल्म बनाने के लिए दूसरे लोगो को ढूँढना पड़ जायेगा,

ये फर्जी देशभक्त भाग खड़े होगे।

— सूर्यकान्त यादव—–

समाजिक कार्यकर्ता

•••सामंतवाद से समाजवाद•••

सामंतवाद क्या है?

पडोसी लाठी लेकर आये और आपकी भैंस छीन ले

जाए
पूँजीवाद क्या है?
पड़ोसी लाठी लेकर आये और आपकी भैंस का दूहा दूध छीन ले जाए
समाजवाद क्या है?
जब आपकी भैंस दूध न दे,तो पडोसी अपनी भैंस का आधा दूध आपको दे दे,जब पड़ोसी की भैंस दूध न दे,तब आप अपनी भैंस का आधा दूध उसे दे दे

असंभव

जहाँ हमारे कदम रूक जाये वही असंभव की सीमा है,वर्ना असंभव सिर्फ हमारे मन का वहम है,और कुछ नही

पैसे वाली शिक्षा देश के लिए घातक

हमारे देश के लोगो  को भगत सिह,चन्द्रशेखर आजाद,सुभाष चन्द्र बोस तो चाहिए पर अपने घर मे नही बल्कि पड़ोसी के घर मे,

बताइए कैसे सुधार होगा

आजकल  गजब की शिक्षा दी जारी है  बच्चो को
हर बात मे उन्हे  पैसा समझाया जा रहा है,लाजिमी है बड़ा होकर वो पैसा तो कमाना ही चाहेगा,देशभक्ति,समाजिक ज्ञान से बच्चो को दूर रखा जा रहा है,उन्हे बस इतना ही पढाया जा रहा है कि वो परीक्षा पास कर ले,
 सपने माँ बाप अपना नाम रोशन करने का देख रहे है, हाँ बेटा भी बडा होकर नाम रोशन करता है

बडे बडे घोटालो मे बडे बडे अपराधो मे पैसा है कुछ भी करायेगा

भ्रष्टाचार ऐसे थोड़े ना बढा है,

हर जगह इसकी जड़े जम चुकी है।

जिसको उखाड़ना बहुत मुश्किल है,

आजकल के बच्चो को इतिहास अच्छी तरह से पढाने की जरूरत है,क्योकि जीवन मे भौतिक,रसायन विज्ञान से ज्यादा इसी की जरूरत है।

बेटी के सम्मान मे लाठी चार्ज मैदान मे

बीएचयू की छात्राये छेड़खानी को लेकर सड़को पर उतरी है,सरकार से बस अपनी सुरक्षा की माँग कर रही है,लेकिन सिर्फ नारो से काम चलाने वाली सरकार उनको सुरक्षा देने के बजाय उनके उपर लाठीचार्ज करवा रही है,उनके हास्टलो मे रात मे घुस कर मार रही है, और प्रधानमंत्री जी वाराणसी मे रूके हुए भी है,, जो चुनाव के समय महिला सुरक्षा को लेकर बहुत बड़े-बड़े वादे कर रहे थे,और उनके नाक के नीचे नवरात्रि के उपलक्ष्य मे लड़कियो को लाठीचार्ज का इनाम दिया जा रहा है।

नवरात्रि मे प्रधानमंत्री जी द्धारा  लड़कियो की पूजा करना और पुलिस द्धारा उनको मारना,उनकी आवाज दबाना,रंगा सियार वाली कहानी को चरितार्थ कर रहा है।

एक बनावटी चेहरे की हकीकत दुनिया के सामने आ रही है,हम अब लोकतंत्र मे नही  जी रहे है अब तनाशाही तंत्र का हम हिस्सा बन चुके है।

अब तो यही कहना ठीक होगा

महिलाओ के सम्मान मे,लाठीचार्ज मैदान मे

इन्सान

नमस्कार दोस्तो 

मै आज अपने समाज की उस बेदना को रेखांकित करना चाहूँगा, जो हमे चेतना शून्य बना दिया है,हमे इन्सान से जानवरो से भी नीचले स्तर पर पहुँचा दिया है।हमारे देश के महान लोगो के द्धारा एक सुविचार कहा गया– सेवा के लिए उठा एक हाथ हजारो दुआओ वाले हाथो से बेहतर होता है।

लेकिन बात इन्सान पर आकर रूक जाती है,आखिर इन्सान है कौन,इन्सान की परिभाषा क्या है,सेवा के लिए उठाने वाले हाथ कैसे ब्यक्ति होते है।

इन्सान के बारे मे जानने से पहले हमे राक्षस के बारे मे जानना अब आवश्यक है,

••••••••••••••••••राक्षस•••••••••••

दूसरो की पीड़ा को जो महसूस न कर सके,किसी को परेसानी मे देखकर जिसका दिल उसके सहायता के लिए न बोल सके वास्तव मे राक्षस वही है।

••••••••••••••••इन्सान••••••••••

इन्सान की कितनी परिभाषा हो सकती है अनुमान नही लगाया जा सकता

पर सटिक रूप से 

जिसे दूसरो के दुखो को देखकर दुख होता है,जिसको इस दुनिया से जाने के बाद लोग हमेशा अपने दिल मे बसा के रखते है,आदर के साथ नमन करते है,जिसके जनाजे मे चलने वाले हर आदमी की आँखे नम होती है। जिसके बताये मार्गो पर युगो तक आने वाली पीढिया चलती है,उसका अनुसरण करती है,खुद को वैसा  रोल माँड़ल बनाना चाहती है,और उस पर गर्व करती है

इन्सान वही है,

लेकिन अफसोस वाली बात ये है कि आज जल्दी कोई इन्सान नही बनना चाहता,किसी के पास वक्त ही नही दूसरो के सुख दुख मे जाने का,हम मतलबीपन से ग्रसित हो चुके है,और हमारा मतलबी वाला मिजाज ही हमे राक्षस बना रहा है।

हमारे समाज मे कटुता पैदा कर रहा है,भारतीय संस्कृति का गला घोट रहा है,और हमे आपस मे बाँट रहा है।

जय हिन्द 

      

सूर्यकान्त यादव की कलम से

 

समाज शर्मसार


बीएच यू की छात्रा आकांक्षा सिंह छेड़खानी को लेकर सैकड़ो छात्राओ के साथ सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर रही है।

यही नही पुलिस और सरकार की नाकामियो को लेकर अपना बाल भी मुड़ा चुकी है।

छेड़खानी,जैसे घृर्णित काम एक ऐसे विश्वविद्यालय मे होना जहाँ के छात्र,छात्राओ को लेकर  हमारे मन मे हमेशा सकारात्मक विचार रहता है,सोचनीय है।

मै पहले भी कहा था आज भी कह रहा हूँ,

हमारे सामाज को लज्जित करने वाले,हमारे सर को झुकाने वाले काम किसी कानून से नही 

बल्कि अच्छी मानसिकता की वजह से ही कम हो सकते है।

कानून तभी कारगर हो सकता है जब छेड़खानी,बलात्कार,जैसी घटनाओ पर तुरंत कारवाई हो,और कड़ी  सजा का प्रावधान हो